Header Ads

स्वयं का आत्मनिरीक्षण ! क्यों और कैसे ?

     

स्वयं का आत्मनिरीक्षण ! क्यों और कैसे ?



आत्मनिरीक्षण का अर्थ है "अपनी सोच का निरीक्षण"। इसके लिए सबसे पहले हमें यह तय करना है कि सामान्य रूप से हम किन विचारों के प्रभाव में होते हैं। हमारे सोचने का मूल सिद्धांत श्रेष्ठता का है, या सामान्यता का। हम जीवन में खुश रहने में यकीन करते हैं, या निराश रहने में। हम हर उपलब्धि का आनन्द लेते हैं, या अक्सर तनाव पाले रहते हैं। अन्य लोगों की प्रतिक्रिया से हम तुरंत प्रभावित हो जाते हैं, या हमारे भीतर स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता है।

आत्मनिरीक्षण हमारे अपने जीवन का एक लाइव टेलीकास्ट है। इस सिद्धांत में आपके जीवन में जो घट रहा है, उसे केवल देखते जाना है। आत्मनिरीक्षण करते हुए आपको अनेक कड़वे एवं मीठे अनुभव होंगे। यदि आपने जीवन में कुछ लक्ष्य बनाये हैं तो आत्मनिरीक्षण करते हुए आप अपनी दिशा का मूल्यांकन कर पायेंगे। तब आप जान पायेंगे कि आपका जीवन लक्ष्यों की दिशा में जा रहा है अथवा नहीं। यदि आपके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं हैं तो वह भी आत्मनिरीक्षण के दौरान आपको महसूस होगा।

इस कार्य में आपकी मदद आपके अतिरिक्त और कोई अन्य नहीं करेगा। पूरी ईमानदारी से यह जिम्मेदारी आपको खुद ही उठानी पड़ेगी। इस कार्य में आपको देखना है कि आपकी मनोदशा कैसी रहती है। किन परिस्थितियों में आपके चेहरे पर मुश्कान आती है, और किन में उदासी। जब तक आप अपनी वर्तमान मनोदशा को ठीक से नहीं समझेंगे, ताकतवर सोच की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती। ताकतवर सोच की शुरुआत ही अंतरात्मा से होती है। पहले इंसान स्वयं के अंदर से शुद्धिकरण करके सशक्त बनता है, फिर बाहरी दुनिया की ओर कदम बढ़ाता है।

जीवन में आप क्या सही और क्या गलत कर रहे है, इसकी सबसे ज्यादा जानकारी आपको है। आप अपनी क्षमताओं एवं खूबियों का कितना उपयोग कर रहे हैं, आप अपने कार्य में कितना समर्पित है, यह भी आपसे बेहतर कोई नहीं जानता। अतः आत्मनिरीक्षण की शत प्रतिशत जिम्मेदारी आपकी है।

इसलिए दोस्तों,,, हमेशा आत्मनिरीक्षण करते रहे ! हमेशा बेहतर सोचें ! और एक दिन बेहतर बन जाए !,,,,


आगे पढे : मानव जीवन में अज्ञानता क्या है ?

2 comments:

Powered by Blogger.