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भाग्यवादी नज़रिया क्या है? और इसके क्या नुकसान है?

भाग्यवादी नज़रिया क्या है? और इसके क्या नुकसान है?

भाग्यवादी नज़रिए वाले लोग सफलता और असफलता दोनों को भाग्य की देन मानते हैं। वैसे लोग सबकुछ भाग्य पर छोड़ देते हैं। दरअसल वैसे इंसान उनके हालात की वजह से जन्म लेने वाली जिम्मेदारियों को स्वीकार करने से कतराते है। वे अपनी कुंडली द्वारा पहले से ही लिखी गई तक़दीर को मंजूर कर लेते हैं।

भाग्यवादी विचार रखने वाले लोग यह मान लेते है कि लाख कोशिश करने के बावजूद होगा वही, जो किस्मत में लिखा हैं। इसलिए वे कोई कोशिश ही नहीं करते है, और आत्मसंतुष्टि उनकी ज़िंदगी के जीने का तरीका बन जाती है। वे स्वयं कुछ कर गुजरने के बजाए कुछ मैजिक घटित होने का इंतजार करते रहते है। किसी भी असफल व्यक्ति से पूछिए तो यही जवाब मिलेगा कि क़ामयाबी तो किस्मत से मिलती है।

दोस्तों!,,, यह शत प्रतिशत सच है कि कमजोर दिमाग वाले लोग तक़दीर बताने वालों, कुंडली देखने वालों और खुद को अवतारी पुरुष घोषित करने वालों के चक्कर में आसानी से आ जाते है, जबकि अधिकतर ऐसे लोग केवल पाखण्ड कर रहे होते है। अर्थात भाग्यवादी लोग अन्धविश्वास के चंगुल में आसानी से फँस जाते है।

सच तो यह है कि यदि हम असफल होना चाहते है, तो भाग्य में विश्वास कीजिए और सफल होना चाहते है तो "वजह और नतीजे" के सिद्धांत में विश्वास कीजिए,, इस तरह हम अपनी किस्मत ख़ुद बनाएँगे। एक दार्शनिक ने कहा है कि - मैं जितनी कड़ी मेहनत करता हूँ, भाग्य के उतने ही करीब पहुँच जाता हूँ।,,,

कुछ लोग ख़ुद को बदनसीब मानते है। इस तरह की सोच भाग्यवादी नजरिए को जन्म देती है। यदि हम इस प्रकार के नजरिए को अपनाते है, तो हमारा असफल होना निश्चित है, क्योंकि आपमें दृढ़ता और समर्पण की कमी है। सोचने का यह ढंग साहस, प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास की कमी दर्शाता है।

इसलिए हमें जीवन में सफलता हासिल करने के लिए भाग्यवादी विचारधारा को त्याग कर निरंतर कर्म के मार्ग को चुनना होगा। क्योंकि लगातार कोशिश करने वाले ही कामयाब होते है। न्यूटन साहब ने भी कहा है कि - Chances always favour in active mind. अर्थात निरंतर प्रयत्नशील व्यक्ति को ही अवसर प्राप्त होता है।

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