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Lamarckism (लामार्कवाद) क्या है?

Lamarckism (लामार्कवाद) क्या है?

फ्रांसीसी प्रकृति वैज्ञानिक J.B.Lamarck ने सर्वप्रथम 1809 ई. में जैव विकास के अपने विचारों को अपनी पुस्तक 'philosophic zoologique' में प्रकाशित किया। उनके विचारों को ही लामार्कवाद (Lamarckism) कहा गया। लामार्कवाद को Theory of inheritance of acquired characters (उपार्जित लक्षणों का वंशागति सिद्धांत) भी कहते है।

Lamarck के अनुसार जीवों की संरचना एवं उनके व्यवहार पर वातावरण के परिवर्तन का सीधा प्रभाव पड़ता है। परिवर्तित वातावरण के कारण जीवों के अंगों का उपयोग ज्यादा अथवा कम होता है। जिन अंगों का उपयोग अधिक होता है, वे अधिक विकसित हो जाते है तथा जिनका उपयोग नहीं होता है, उनका धीरे-धीरे ह्रास हो जाता है। वातावरण के सीधे प्रभाव से या अंगों के कम अथवा अधिक उपयोग के कारण जंतु के शरीर में जो परिवर्तन होते है, उन्हें Acquired characters (उपार्जित लक्षण) कहते है।

लामार्कवाद के अनुसार जंतुओं के उपार्जित लक्षण वंशागत होते है, अर्थात एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में Reproduction (प्रजनन) के द्वारा चले जाते हैं। ऐसा लगातार होने से कुछ पीढ़ियों के पश्चात् उनकी शारीरिक रचना बदल जाती है तथा एक नए प्रजाति का विकास हो जाता है।

लामार्कवाद का ,,,बाद में कई वैज्ञानिकों ने जोरदार खंडन किया। उन वैज्ञानिकों के अनुसार उपार्जित लक्षण वंशागत नहीं होते है। इसकी पुष्टि के लिए जर्मन वैज्ञानिक Weismann ने 21 पीढ़ियों तक चूहे की पूँछ काटकर यह प्रदर्शित किया कि कटे पूँछ वाले चूहे की संतानों में हर पीढ़ी में पूँछ वर्तमान रह जाता है। लोहार की हाथों की मांसपेशियाँ हथौड़ा चलाने के कारण मजबूत हो जाती है, परन्तु उसकी संतानों में ऐसी मजबूत मांसपेशियों का गुण वंशागत नहीं हो पाता है।

वैसे जीव जिनमें Sexual reproduction (लैंगिक जनन) होता है, जनन कोशिकाओं का निर्माण उनके जनन ग्रंथि (Gonad) में होता है। जबकि शरीर की अन्य कोशिकाएं Somatic cells (कायिक कोशिकाएं) कहलाती हैं। ,,,,,,वातावरण के प्रभाव के कारण कायिक कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन संतानों में संचारित नहीं होते है। इसका कारण यह है कि कायिक कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन उनके साथ-साथ जनन कोशिकाओं में नहीं होते है।



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