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हम अपने धर्म का पालन कैसे करें ?

धर्म पालन करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित्त की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है।

हम अपने धर्म का पालन कैसे करें ?

दोस्तों! मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के बुरे-भले कामों का ज्ञान और दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। बस, मनुष्य इन्ही दोनों के बीच में पड़ा रहता है। और अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है। परन्तु, यदि उसका मन दुविधा में पड़ा रहा, तो स्वार्थपरता उसे निश्चित ही घेरेगी और उसका चरित्र घृणा के योग्य हो जाएगा।

इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि आत्मा जिस बात को करने की प्रेरणा दे, उसे बिना स्वार्थन सोचे, झटपट कर डालना चाहिए। इस संसार में जितने भी बड़े-बड़े लोग हुए हैं, सभी ने अपने कर्त्तव्य को सर्वश्रेष्ठ माना है, क्योंकि जितने कर्म उन्होंने किए उन सबने कर्त्तव्य पर ध्यान देकर न्याय का बर्ताव किया। और उनकी श्रेणियों में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।

जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्त्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सत्यता से दूर हो जाते है। परन्तु, जो मनुष्य अपना कर्त्तव्य पालन करता है वह अपने कामों और वचनों में सत्यता का बर्ताव भी रखता है। सत्यता ही एक ऐसी वस्तु है जिससे इस संसार में मनुष्य अपने कार्यों में सफलता पा सकता है। ठीक इसके विपरीत संसार में कोई काम झूठ बोलने से नहीं चल सकता।

झूठ की उत्पत्ति पाप एवं कुटिलता से होती है। झूठ बोलना कई रूपों में दिख पड़ता है, जैसे:- चुप रहना, किसी बात को बढ़ा चढ़ाकर कहना, किसी बात को छिपाना, झूठ-मूठ दूसरों की हाँ में हाँ मिलाना आदि। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मुँह देखी बातें बनाया करते हैं, परन्तु करते वही है जो उन्हें जँचता है। ऐसे लोग मन में समझते हैं कि कैसे सबकों मूर्ख बनाकर हमने अपना काम कर लिया, पर वास्तव में वे अपने को ही मूर्ख बनाते हैं और अंत में उनकी पोल खुल जाने पर समाज के लोग उनसे घृणा करते हैं।

प्यारे दोस्तों! वास्तविकता तो यही हैं कि निःस्वार्थ भाव से श्रद्धापूर्वक अपने जीवन मूल्यों के कर्त्तव्यों का निरन्तर निर्वहन करना ही अपना धर्म पालन है।,,,,,


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