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जीवन में डर क्या है ?

   

जीवन में डर क्या है ?



दोस्तों! हमारे जीवन में डर दो तरह के हो सकते है, वास्तविक एवं काल्पनिक डर। डरा हुआ इंसान अटपटे काम करता है। डर की वास्तविक कारण नासमझी होती है। डर कर जीना भावनाओं की कैद में जीने के समान है। और डर असुरक्षा की भावना, आत्मविश्वास की कमी तथा बहानेबाजी की आदत को जन्म देता है।

डर हमारी क्षमता और योग्यता दोनों को नष्ट कर देता है। डरा हुआ इंसान स्पष्ट रूप से सोच नहीं पाता। डर रिश्तों और सेहत को भी नष्ट कर देता है। आखिर डर का कारण क्या है, इस पर विचार करने पर यह पता चलता है कि अलग-अलग इंसानों में डर की वजह भी अलग-अलग है, जैसे:- असफलता का डर, कुछ अनजाने चीजों का डर, तैयारी न होने का डर, गलत फैसला लेने का डर तथा अस्वीकार किये जाने का डर आदि।

कई प्रकार के डरों को बयान किया जा सकता है, जबकि कई प्रकार के डर केवल महसूस किये जा सकते है। डर इंसान को बेचैन कर देता है, जिसकी वजह से इंसान ब्यर्थ की बातें सोचने लगता है। और समस्या का हल निकालने में विफल हो जाते है। आमतौर पर लोग डर से दूर भागते है। भागने से हमें कुछ राहत मिलती है, और कुछ देर के लिए डर का असर कम हो जाता है, लेकिन डर की वजह बरक़रार रहती है। इसलिए डर से भागने के बजाय हमें उनके कारणों तक पहुँच कर स्थायी समाधान तलाशना चाहिए।

दोस्तों !,,, असफलता से भी अधिक बुरा असफलता का डर होता है। इंसानों के साथ घटित होने वाली सबसे बुरी वारदात असफलता नहीं होती है। बल्कि कोशिश न करने वाले लोग प्रयत्न करने से पहले ही असफल हो जाते है। बच्चे जब चलना सीखते है, तो बार-बार गिरते है, लेकिन उनके लिए वह असफलता नहीं, बल्कि सिख होती है। अगर वे मायूस हो जाएँ, तो कभी चल नहीं पाएँगे। घुटनों के बल बैठकर डरी हुई जिंदगी जीने से ज्यादा बेहतर अपने पैरों पर खड़ा होकर मरना होता है। डर का एक ही इलाज है, "डटे रहो ! और अड़े रहो !!"


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