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आपमें, लक्ष्य को पाने की चाहत ! कितनी ?

    

आपमें, लक्ष्य को पाने की चाहत ! कितनी ?



मैंने लोगों की इच्छाओं को समझने के लिए लगभग 100 लोगों से पूछा कि, आप क्या पाना चाहते हैं और आपकी क्या आकांक्षाएँ है ? तो लोगों का ज्यादातर जवाब मिला कि :- धन, सुख, प्रसिद्धि, सौंदर्य, स्वास्थ्य, परिवार की तरक्की, ऐशो आराम, अच्छा घर, अच्छी गाड़ी, कैरियर में सफलता आदि चाहिये।

लेकिन मैंने ज्योही उन सवालों पर फिर सवाल डालता गया,, हमने पूछा:- धन चाहिये, तो कितने धन से संतुष्ट होंगे, और कब तक पायेंगे? सुख चाहिये, तो आप क्या पाकर सुखी होंगे? प्रसिद्धि कितनी और कितने दिनों में चाहिये? कैरियर में कैसी सफलता और कितने दिनों में चाहिये?

अब लोगों के पास जवाब कम थे। अधिकांश लोगों के पास इच्छाएँ तो बहुत थी परन्तु वह स्पष्ट नहीं थी। इच्छाएँ कैसे प्राप्त होगी, इसका आइडिया नहीं था। कहने का तात्पर्य यह है कि लोगों में सिर्फ इच्छाएँ थी, लेकिन कोई ठोस लक्ष्य नहीं था।

इस विषय को समझने के लिए आज हमलोग फिर से एक छोटी सी कहानी देखते हैं। ,,,,, एक जंगल में एक भूखा शेर अपनी भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। तभी अचानक एक खरगोश दिखा। अब शेर का ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। शेर तेजी से खरगोश के तरफ झपटा और दौड़ने लगा। लेकिन खरगोश भी काफी फुर्तीला और तेज थी। उसने भी काफी तेज दौड़ लगा दी। अब आगे-आगे खरगोश और पीछे-पीछे शेर। कुछ दूर जाते ही एक बिल में खरगोश घुस गयी। शेर तो पहले से ही भूखा था, उसने बिल को पंजों से कुरेदने लगा।

तभी एक दूसरा शेर वहा से गुजरते हुए उस शेर को अजीब हरकत करते देखा, और पूछा भाई क्या कर रहे हो ? तुम। पहले वाले ने जवाब दिया कि - इस बिल में एक खरगोश है जिसे मैं खाकर रहूँगा। तभी दूसरे शेर को भी लालच आया, और बोला भाई मैं भी तुम्हे कुरेदने में मदद करता हूँ लेकिन मुझे भी कुछ हिस्सा देना होगा। तो पहले वाले ने सहमति दे दिया। अब दोनों मिलकर बिल को खोदने लगा। यह सिलसिला बहुत देर तक चलता रहा, लेकिन खरगोश का कोई पता अब तक नहीं चला। धीरे-धीरे दूसरा शेर थकने लगा और अंत में बोला भाई तुम ही अकेले खा लेना मैं तो अब चलता हूँ।

लेकिन पहला शेर लगातार बिल को खोदते रहा, और एक समय ऐसा आया जब खरगोश दिखा। तब उस शेर ने खरगोश को दबोचा और आराम से खाया।

दोस्तों,,, अब जरा सोचिए कि पहला शेर सफल और दूसरा शेर असफल क्यों रहा ? कारण यह है कि दूसरे शेर के पास केवल इच्छाएँ थी ,उसे लक्ष्य दिखा ही नहीं था। लेकिन पहला शेर भूखा भी था, लक्ष्य को देख भी चूका था। इसलिए वह तबतक मेहनत करता रहा, जब तक कि अपने लक्ष्य को पा न ले। दोस्तों, अब मुझे ऐसा एहसास होता है कि सिर्फ बड़ी-बड़ी इच्छाएँ रखने से हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा, इसके लिए हमें ठोस एवं दृश्य लक्ष्य निर्धारित करते हुए जबरदस्त मेहनत करना होगा।,,,,,,


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