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निरंतर अपने कर्तव्यों पर डटे रहें ।

निरंतर अपने कर्तव्यों पर डटे रहें ।

बिना कर्तव्यों का निर्वहन किये हमें आशावादी बने रहना, मूर्खता है। आज फिर एक छोटी सी कहानी से हम कुछ सीखने का प्रयास करेंगे।,,,,,,, एक बड़ी सी महल के प्रांगण में एक बेहद पुराना पेड़ था। उस पेड़ पर एक बन्दर और एक चिड़िया का बसेरा था। एक दिन उस महल में आग लग गयी। सारे लोग आग बुझाने में जुट गए। कोई फायर बिग्रेड को फोन कर रहा था, तो कोई आग पर पानी फेंक रहा था।

दुःखी होकर चिड़िया ने बन्दर से कहा - बन्दर भाई, हम भी सालों से इस महल का हिस्सा है, हमें भी कुछ करना चाहिए।,,,,,,,,, यह सुनते ही बन्दर जोर-जोर से हँसने लगा और बोला - तू बित्ते भर की चिड़िया क्या करेगी, क्या इस महल की आग बुझा लेगी ?

चिड़िया चुप रह गयी। कुछ देर बाद चिड़िया ने पुनः अनुरोध किया, परन्तु बन्दर ने फिर मजाक उड़ा दिया।

अब चिड़िया से रहा नहीं गया। पेड़ से उड़कर वह पास ही पानी के एक छोटे से गड्ढे में गयी और अपनी चोंच में पानी लाकर आग पर डाला। देर तक वह उस गड्ढे से पानी लाकर डालती रही। बन्दर यह देखकर लगातार हँस रहा था। काफी देर बाद बहुत सारे लोगों के मिले-जुले प्रयासों से आग बुझ गयी।

चिड़िया के पेड़ पर लौटते ही बन्दर ने कहा - तुम्हे क्या लगता है, अपनी दो इंच की चोंच से पानी डालकर आग तुमने बुझाई है ? ,,,, चिड़िया ने तिरस्कार से बन्दर को देखा और जवाब दिया - सुनो बन्दर , इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी चोंच का साइज क्या है। इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस आग को बुझाने में मेरा कितना योगदान था। लेकिन तुम हमेशा यह याद रखना कि जिस दिन इस महल में आग लगने और बुझने का इतिहास लिखा जाएगा, उस दिन मेरा नाम आग बुझाने वालों में आएगा और तुम्हारा नाम किनारे बैठकर हँसने वालो में।

दोस्तों, यह सच है कि हम सबकी क्षमताएँ अलग है, परिस्थिति अलग है, योग्यताएँ अलग है। इससे हमारे जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ता है। फर्क इस बात से पड़ता है कि हमने उतना प्रयास किया है अथवा नहीं, जितना हम कर सकते थे। हमने उतनी ताकत झोंकी है या नहीं, जितनी हम झोंक सकते थे। हम अपनी पूरी क्षमता से मुश्किलों का सामना कर रहे है या नहीं।

हमारे भीतर उस चिड़िया जैसे व्यवहार करने की क्षमता होनी चाहिये, जो बन्दर को अनसुना करके अपनी कर्तव्य पर डटी रही। चिड़िया ने जब आग बुझाने का मन बना लिया, तो यह नहीं सोंचा कि वह कितना योगदान दे पाएगी। वह पूरी लगन से सिर्फ अपने कर्तव्य का निर्वहन की।

इसलिए हमें सिर्फ साकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए अपनी कर्तव्यों का निर्वहन पूरी क्षमता के साथ करते रहना चाहिए,, मनोवांछित लक्ष्य की प्राप्ति स्वतः हो जाएगी।


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