जैव विकास में डार्विनवाद

जीव विज्ञान की दुनिया में जीवों की उत्पत्ति के संबंध में अनेकों शिक्षाशास्त्रियों ने अपना अपना मत रखा है परंतु उसमे डार्विनवाद सबसे ज्यादा सर्वमान्य साबित हुआ। 1809-1882 ई. के बीच ब्रिटिश प्रकृतिशास्त्री चार्ल्स डार्विन ने 1859 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक The origin of species में Theory of Evolution प्रतिपादित किया। उनके सिद्धांत के अनुसार सभी जीवों की उत्पत्ति एककोशिकीय सरल जीव से हुई है। अर्थात आज के वर्तमान दुनिया की सभी जीव प्रजातियां मूल रूप से एक दूसरे से सम्बंधित हैं। उनके दिए हुए सिद्धांत को ही डार्विनवाद के नाम से जानते हैं।
डार्विनवाद से प्राप्त जानकारियाँ ----
* जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से हुई है तथा जटिल जैविक संरचना वाले जीवों का विकास एक लंबे समय में धीरे-धीरे सरल संरचना वाले जीवों से हुआ हैं।
* जीवो के विकास के क्रम में उनमें कुछ आनुवांशिक परिवर्तन होते रहते है जो अगली पीढ़ी के जीव में परिलक्षित होते रहते है। इस प्रक्रिया को Mutation(उत्परिवर्तन) कहते है।
* ऐसे परिवर्तन जो जीवों को प्रकृति के अनुकूल बनाने में सहायक होते हैं वे अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होते रहते है तथा शेष परिवर्तन समाप्त होते रहते है।
* प्रकृति द्वारा निर्धारित यह प्रक्रिया Natural Selection (प्राकृतिक चयन) कहलाती है तथा प्रकृति के अनुकूल बेहतर परिवर्तन वाले जीवों का अस्तित्व में बने रहना Survival of the Fittest (योग्यतम की उत्तरजीविता) कहलाती है।
इसलिये डार्विनवाद (Darwinism) को Theory of Natural Selection (प्राकृतिक चयन का सिद्धांत) तथा Theory of Survival of the Fittest (योग्यतम की उत्तरजीविता का सिद्धांत) भी कहा जाता हैं।
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